October 28, 2013

बुलबुला

ये जो क्षणिक सुख है तेरा
कभी ठंडी छाँव जैसा, या कभी सवेरा
कभी यूँ पतझड़ सा तुझसे बिछड़ना
कभी तेरी बातों की सिहरन में लिपटना
कभी तेरी शरारती हंसी में, आशाओं के अंकुरों का फूटना
क्या है ये सब बता?

ये जो क्षणिक माया है तेरी
बच्चों से अल्हड़ ख्वाबों से भरी
जैसे मेरे आईने में तेरी प्यारी सी झलक
कभी मेरे होठों पर तेरी यादों कि कसक
कभी तेरी सूनी साँसों में मेरा वो पैगाम
क्या है ये सब बता?

ये जो क्षणिक दिन और रातें
जिनमें है तेरा रैन-बसेरा
क्षण मात्र का, कब तक रहेगा?
शायद ये कभी था ही ना अपना कहने को
मुझे पता है, तू कुछ नहीं कहेगा
पूछना बेकार है कि, क्या है ये सब बता?