November 24, 2013

पतझड़

वो ऊन के उलझे नरम गोले
जो लिपटे नारंगी के कसैले रेशों में
ऐसे बिखरे पड़े रहते मानो
छत की सूखी ज़मीन पर
पड़ी दरारों को मना रहे हों... कि 
धूप जाएगी, और तुम्हारी वेदना शांत होगी
एक दिन ...

बचपन की तो वेदना ही थी ना  ...
वो सफ़ेद बादलों से झांकती हुई मीठी सी धूप

अब देह तरस गयी है
पर कितना किलसेगी यह सोचकर... कि
अब उस ऊन का और
छत पे पड़ी उस टूटी चटाई का ...सहारा कहाँ ? 

October 28, 2013

बुलबुला

ये जो क्षणिक सुख है तेरा
कभी ठंडी छाँव जैसा, या कभी सवेरा
कभी यूँ पतझड़ सा तुझसे बिछड़ना
कभी तेरी बातों की सिहरन में लिपटना
कभी तेरी शरारती हंसी में, आशाओं के अंकुरों का फूटना
क्या है ये सब बता?

ये जो क्षणिक माया है तेरी
बच्चों से अल्हड़ ख्वाबों से भरी
जैसे मेरे आईने में तेरी प्यारी सी झलक
कभी मेरे होठों पर तेरी यादों कि कसक
कभी तेरी सूनी साँसों में मेरा वो पैगाम
क्या है ये सब बता?

ये जो क्षणिक दिन और रातें
जिनमें है तेरा रैन-बसेरा
क्षण मात्र का, कब तक रहेगा?
शायद ये कभी था ही ना अपना कहने को
मुझे पता है, तू कुछ नहीं कहेगा
पूछना बेकार है कि, क्या है ये सब बता?

February 17, 2013

Choices


The symphony of your game
Makes barren your dame
Carvings of such beautiful craters
On the insides of your favorite hater
What were you thinking?
The sun will set when the stars start blinking
Don’t let the meteors burn
Mate with the moon, because soon it’ll be your turn
To be the sun…